Tuesday, September 21, 2010

संत रविदास


संत कुलभूषण कवि रैदास उन महान् सन्तों में अग्रणी थे जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान किया। इनकी रचनाओं की विशेषता लोक-वाणी का अद्भुत प्रयोग रही है जिससे जनमानस पर इनका अमिट प्रभाव पड़ता है। मधुर एवं सहज संत रैदास की वाणी ज्ञानाश्रयी होते हुए भी ज्ञानाश्रयी एवं प्रेमाश्रयी शाखाओं के मध्य सेतु की तरह है।
प्राचीनकाल से ही भारत में विभिन्न धर्मों तथा मतों के अनुयायी निवास करते रहे हैं। इन सबमें मेल-जोल और भाईचारा बढ़ाने के लिए सन्तों ने समय-समय पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ऐसे सन्तों में रैदास का नाम अग्रगण्य है। वे सन्तकबीर के गुरूभाई थे क्योंकि उनके भी गुरु स्वामी रामानन्द थे।
आज(२ सितम्बर २००९) से लगभग छ: सौ बत्तीस वर्ष पहले भारतीय समाज अनेक बुराइयों से ग्रस्त था। उसी समय रैदास जैसे समाज-सुधारक सन्तों का प्रादुर्भाव हुआ। रैदास का जन्म काशी में चर्मकार कुल में हुआ था। उनके पिता का नाम संतो़ख दास (रग्घु) और माता का नाम कर्मा देवी बताया जाता है। रैदास ने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था। जूते बनाने का काम उनका पैतृक व्यवसाय था और उन्होंने इसे सहर्ष अपनाया। वे अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर बहुत ध्यान देते थे।
उनकी समयानुपालन की प्रवृति तथा मधुर व्यवहार के कारण उनके सम्पर्क में आने वाले लोग भी बहुत प्रसन्न रहते थे।

प्रारम्भ से ही रैदास बहुत परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था। साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था। वे उन्हें प्राय: मूल्य लिये बिना जूते भेंट कर दिया करते थे। उनके स्वभाव के कारण उनके माता-पिता उनसे अप्रसन्न रहते थे। कुछ समय बाद उन्होंने रैदास तथा उनकी पत्नी को अपने घर से अलग कर दिया। रैदास पड़ोस में ही अपने लिए एक अलग झोपड़ी बनाकर तत्परता से अपने व्यवसाय का काम करते थे और शेष समय ईश्वर-भजन तथा साधु-सन्तों के सत्संग में व्यतीत करते थे I

6 comments:

  1. संत रविदास से शायद अधिकतर लोग परचित होंगे वो आदरणीय और पूजनीय हैं - आपने बताया धन्यवाद् लेकिन "दलित साहित्य" पढ़कर आश्चर्य हुआ - हार्दिक शुभकामनाएं

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  2. हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है....
    बहुत खूब लिखा है....

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  3. ‌‌‌र​विदास जी महान थे हैं और रहेंगे। उनकी वाणी श्री गुरु ग्रंथ सा​हिब जी में भी शा​मिल है। उनके सा​हित्य को द​लित कहा जाना सही नहीं। हो सकता है ​कि मैं गलत होउं, आप उनके और उनके सा​हित्य के बारे में ज्यादा जानते हों।

    http://www.tikhatadka.blogspot.com/

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  4. हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  5. kripya likhte rahiye,samajik krantikari Ravidass ji par net par bahut kam hi uplabdh hai

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  6. क्या आप एक उम्र कैदी का जीवन पढना पसंद करेंगे, यदि हाँ तो नीचे दिए लिंक पर पढ़ सकते है :-
    1- http://umraquaidi.blogspot.com/2010/10/blog-post_10.html
    2- http://umraquaidi.blogspot.com/2010/10/blog-post.html

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