Wednesday, August 4, 2010

गांधीजी और दलित भारत-जागरण

अनुसूचित जाति औद्योगिकीकरण २००२-२००८ भारत में दलितों के अधिकारों की मांग आजादी से पहले से ही शुरू हो गई थी। जिसका सीधा सा कारण था अंग्रेजी शिक्षा और शासन। यद्यपि अंग्रेज देश की सामाजिक संरचना में किसी भी तरह का हस्तक्षेप पसंद नहीं करते थे इसके बावजूद मानवीय अधिकारों के संदर्भ में उनकी विचारधाराएं इतनी प्रबल थीं कि उन्हें दलितों के अधिकारों के संदर्भ में सोचने को मजबूर होना पड़ा। भारत में दलित आंदोलन की शुरूआत ज्योतिराव गोविंदराव फुले के नेतृत्व में हुई। ज्योतिबा जाति से माली थे और समाज के ऐसे तबके से संबध रखते थे जिन्हे उच्च जाति के समान अधिकार नहीं प्राप्त थे। इसके बावजूद ज्योतिबा फूले ने हमेशा ही तथाकथित 'नीची' जाति के लोगों के अधिकारों की पैरवी की। भारतीय समाज में ज्योतिबा का सबसे दलितों की शिक्षा का प्रयास था। ज्योतिबा ही वो पहले शख्स थे जिन्होंन दलितों के अधिकारों के साथ-साथ दलितों की शिक्षा की भी पैरवी की। इसके साथ ही ज्योति ने महिलाओं के शिक्षा के लिए सहारनीय कदम उठाए। भारतीय इतिहास में ज्योतिबा ही वो पहले शख्स थे जिन्होंने दलितों की शिक्षा के लिए न केवल विद्यालय की वकालत की बल्कि सबसे पहले दलित विद्यालय की भी स्थापना की। ज्योति में भारतीय समाज में दलितों को एक ऐसा पथ दिखाया था जिसपर आगे चलकर दलित समाज और अन्य समाज के लोगों ने चलकर दलितों के अधिकारों की कई लड़ाई लडी। यूं तो ज्योतिबा ने भारत में दलित आंदोलनों का सूत्रपात किया था लेकिन इसे समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का काम बाबा साहब अम्बेडकर ने किया। एक बात और जिसका जिक्र किए बिना दलित आंदोलन की बात बेमानी होगी वो है बौद्ध धर्म। ईसा पूर्व 600 ईसवी में ही बौद्घ धर्म ने समाज के निचले तबकों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई। बुद्घ ने इसके साथ ही बौद्ध धर्म के जरिए एक सामाजिक और राजनीतिक क्रांति लाने की भी पहल की। इसे राजनीतिक क्रांति कहना इसलिए जरूरी है क्योंकि उस समय सत्ता पर धर्म का आधिपत्य था और समाज की दिशा धर्म के द्वारा ही तय की जाती थी। ऐसे में समाज के निचले तलबे को क्रांति की जो दिशा बुद्घ ने दिखाई वो आज भी प्रासांगिक है। भारत में चार्वाक के बाद बुद्घ ही पहले ऐसे शख्स थे जिन्होंने ब्राह्मणवाद के खिलाफ न केवल आवाज उठाई बल्कि एक दर्शन भी दिया। जिससे कि समाज के लोग बौद्घिक दासता की जंजीरों से मुक्त हो सकें।
यदि समाज के निचले तबकों के आदोलनों का आदिकाल से इतिहास देखा जाए तो चार्वाक को नकारना भी संभव नहीं होगा। यद्यपि चार्वाक पर कई तरह के आरोप लगाए जाते हैं इसके बावजूद चार्वाक वो पहला शख्स था जिसने लोगों को भगवान के भय से मुक्त होने सिखाया। भारतीय दर्शन में चार्वाक ने ही बिना धर्म और ईश्वर के सुख की कल्पना की। इस तर्ज पर देखने पर चार्वाक भी दलितों की आवाज़ उठाता नज़र आता है.....खैर बात को लौटाते हैं उस वक्त जिस वक्त दलितों के अधिकारों को कानूनी जामा पहनाने के लिए डॉ. अंबेडकर ने लड़ाई शुरू कर दी थी...वक्त था जब हमारा देश भारत ब्रिटिश उपनिवेश की श्रेणी में आता था। लोगों के ये दासता का समय रहा हो लेकिन दलितों के लिए कई मायनों में स्वर्णकाल था।
आज दलितों को भारत में जो भी अधिकार मिले हैं उसकी पृष्ठभूमि इसी शासन की देन थी। यूरोप में हुए पुर्नजागरण और ज्ञानोदय आंदोलनों के बाद मानवीय मूल्यों का महिमा मंडन हुआ। यही मानवीय मूल्य यूरोप की क्रांति के आर्दश बने। इन आर्दशों की जरिए ही यूरोप में एक ऐसे समाज की रचना की गई जिसमें मानवीय मूल्यों को प्राथमिकता दी गई। ये अलग बाद है कि औद्योगिकीकरण के चलते इन मूल्यों की जगह सबसे पहले पूंजी ने भी यूरोप में ली...लेकिन इसके बावजूद यूरोप में ही सबसे पहले मानवीय अधिकारों को कानूनी मान्यता दी गई। इसका सीधा असर भारत पर पड़ना लाजमी था और पड़ा भी। इसका सीधा सा असर हम भारत के संविधान में देख सकते हैं। भारतीय संविधान की प्रस्तावना से लेकर सभी अनुच्छेद इन्ही मानवीय अधिकारों की रक्षा करते नज़र आते हैं। भारत में दलितों की कानूनी लड़ाई लड़ने का जिम्मा सबसे सशक्त रूप में डॉ. अम्बेडकर ने उठाया। डॉ अम्बेडकर दलित समाज के प्रणेता हैं। बाबा साहब अंबेडकर ने सबसे पहले देश में दलितों के लिए सामाजिक,राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों की पैरवी की। साफ दौर भारतीय समाज के तात्कालिक स्वरूप का विरोध और समाज के सबसे पिछडे़ और तिरस्कृत लोगों के अधिकारों की बात की। राजनीतिक और सामाजिक हर रूप में इसका विरोध स्वाभाविक था। यहां तक की महात्मा गांधी भी इन मांगों के विरोध में कूद पड़े। बाबा साहब ने मांग की दलितों को अलग प्रतिनिधित्व (पृथक निर्वाचिका) मिलना चाहिए यह दलित राजनीति में आज तक की सबसे सशक्त और प्रबल मांग थी। देश की स्वतंत्रता का बीड़ा अपने कंधे पर मानने वाली कांग्रेस की सांसें भी इस मांग पर थम गई थीं। कारण साफ था समाज के ताने बाने में लोगों का सीधा स्वार्थ निहित था और कोई भी इस ताने बाने में जरा सा भी बदलाव नहीं करना चाहता था। महात्मा गांधी जी को इसके विरोध की लाठी बनाया गई और बैठा दिया गया आमरण अनशन पर। आमरण अनशन वैसे ही देश के महात्मा के सबसे प्रबल हथियार था और वो इस हथियार को आये दिन अपनी बातों को मनाने के लिए प्रयोग करते रहते थे। बाबा साहब किसी भी कीमत पर इस मांग से पीछे नहीं हटना चाहते थे वो जानते थे कि इस मांग से पीछे हटने का सीधा सा मतलब था दलितों के लिए उठाई गई सबसे महत्वपूर्ण मांग के खिलाफ में हामी भरना। लेकिन उन पर चारों ओर से दबाव पड़ने लगा.और अंततः पूना पैक्ट के नाम से एक समझौते में दलितों के अधिकारों की मांग को धर्म की दुहाई देकर समाप्त कर दिया गया। इन सबके बावजूद डॉ.अंबेडकर ने हार नहीं मानी और समाज के निचले तबकों के लोगों की लड़ाई जारी रखी। अंबेडकर की प्रयासों का ही ये परिणाम है कि दलितों के अधिकारों को भारतीय संविधान में जगह दी गई। यहां तक कि संविधान के मौलिक अधिकारों के जरिए भी दलितों के अधिकारों की रक्षा करने की कोशिश की गई।

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7 comments:

  1. आपकी पोस्ट और ब्लॉग प्रोफाइल से आप मुझे सभ्य और शालीन ब्लॉगर लगते हैं इसलिए उम्मीद है की आपके साथ चर्चा उस तरह का गलत ,गन्दा और घटिया मोड़ नही लेगी जैसा आपके सत्य गौतम जी करते हैं

    मैं आपसे एक बात जानना चाहता हूँ , दलितों पर अगर ब्राह्मणों या फिर ऊँची जाती कहे जाने वाले लोगों ने जाती-प्रथा के कारण अतीत में अत्याचार और भेद-भाव किये हों तो ये कैसे उचित है की उनको गिनाते हुए आप आज की पीढ़ी को गालियाँ दें बिना उनके विचार जाने के वे भी इस जात-पात में यकीन रखते हैं की नहीं, जो ऐसा भेद-भाव करते थे उन्हें हम भी गलत कह रहे हैं फिर चाहे वे हमारी ही जाती के लोग क्यों ना हो ,लेकिन उन्हें याद करके अगर आप हमें गाली दें बिना हमारे कोई गुनाह किये तो जनाब ये तो बिलकुल भी सहन नहीं किया जा सकता

    हर धर्म और जाती में अच्छे और बुरे दोनों तरह के लोग होते हैं ,हमारा फ़र्ज़ क्या बनता है की किसी जाती के बुरे लोगों की वजह से उस जाती के अच्छे लोगों का भी अपमान किया जाए या फिर उन अच्छे लोगों को अपने साथ जोड़कर उन बुरे लोगों के खिलाफ लड़ा जाए ?

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  2. आप सोच रहे होंगे की ये महक बार-२ अपमान ,गाली आदि शब्दों का प्रयोग क्यों कर रहा है जबकि आपकी पोस्ट में तो ऐसा कुछ भी नहीं है तो मैं आपको बता दूं की मैं आपके सत्य गौतम जी की बात कर रहा हूँ

    ये सत्य गौतम जनाब भी एक अनोखे शख्स हैं ,मेरी इनसे पहली मुलाकात मेरे ब्लॉग " ब्लॉग संसद " पर हुई जहाँ पर इन्होने मुझ पर आरोप लगाया की महक जी ,आपने इतने सारे लोगों को " ब्लॉग संसद " का निमंत्रण भेजा लेकिन मुझे नहीं भेजा, तब मैंने इन्हें बताया की मैंने सिर्फ उन्ही लोगों को ब्लॉग का निमंत्रण भेजा था जिन्हें की मैं ब्लॉग जगत मैं जानता था ,आप और हम मिल ही पहली बार रहें हैं ,इसलिए मैं आपको भी " ब्लॉग संसद " के लिए आमंत्रित करता हूँ
    तो देखिये इनका जवाब-

    ब्लागिंग आपके लिए एक व्यसन है एक अय्याशी है। आप नेता न बन सके आप संसद में न जा सके तो आप ने एक आभासी संसद बना ली है। किसी वीडियो गेम की तरह खेलते रहिये इसे।यह मृग मरीचिका आपको और आपके जैसे पेट भरों को ही मुबारक हो।

    अब आप खुद बताइये की जो व्यक्ति पहले तो कह रहा हो की आपने मुझे नहीं बुलाया ,मेरी आपति दर्ज करें और बुलावा देने पर मना कर दे और सिर्फ मना ही नहीं बल्कि बिना किसी कारण के आपको अपशब्द भी कहे तो ऐसे में क्या बात बन सकती है ?

    और इतना ही नहीं ,इन्होने मुझ पर ये भी आरोप लगाया की मैं भी दलित-सवर्ण के भेद-भाव में यकीन रखता हूँ और इसी कारण मैंने अपने ब्लॉग पर दलित ब्लोग्गेर्स को आमंत्रित नहीं किया

    जब मैंने इन जनाब से कहा की आप मुझे उनके ब्लोग्स के लिंक्स दीजिए मैं अभी उन्हें आमंत्रित करता हूँ तो हो गई इनकी बोलती बंद

    इतने सब कुछ होने के बाद भी मैंने इन्हें दो बार मौका दिया की आप अपनी बात और शिकायतें सभ्य और शालीन शब्दों का प्रयोग करते हुए रखें ,हम सब आपका साथ देंगे तो देखिये इनकी सुन्दर भाषा -

    कुवांरे लड़के जवान होते हैं। उनकी जवानी एक जवान साथी मांगती है लेकिन वह उनके पास होता नहीं तो वे क्या करते हैं ?
    वे हस्तमैथुन करते हैं। उन्हें तृप्ति मिल जाती है। उन्हें लगता है कि उनकी समस्या का समाधान हो गया परन्तु उनकी समस्या का समाधान वास्तव में तब होता है जब उनका विवाह हो जाता है।
    ‘ब्लाग संसद‘ सवर्ण ब्लागर्स का हस्तमैथुन है, आभासी जगत का अद्भुत हस्तमैथुन है यह। हस्तमैथुन के परिणाम वास्तव में बहुत बुरे होते हैं। आप भी यह देर सवेर यह जान ही जाएंगे।


    अब जनाब हम गांधीवादी तो हैं नहीं की कोई एक गाल पर चांटा मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो ,सो हमें भी इनके गाल लाल करने पड़े ,अब कोई बार-२ निवेदन कर रहा है और आप बार-२ उसे मना कर रहें हैं और अगर सिर्फ मना किया होता तो कोई बात नहीं थी लेकिन बार-२ अपशब्दों का प्रयोग करके उसे अपमानित करने का प्रयास कर रहें हैं तो ईंट का जवाब पत्थर से देना तो हमें भी आता है

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  3. आप सोच रहें होंगे की महक ये सब मुझे क्यों बता रहा है तो मैं इसलिए बता रहा हूँ की आपकी पोस्ट पढ़ कर मुझे नहीं लगता की आपकी सत्य गौतम जैसी घटिया मानसिकता होगी, इसलिए ब्लॉग-जगत में मेरी तरफ से आपका स्वागत है ,आपसे यही कहना चाहूँगा की अपने मित्र को समझाएं की इस ब्लॉग जगत में जातिवाद का ज़हर ना घोले, दलित-सवर्ण के बीच की खाई को गहरा करने की बजाये इसे कम करने का प्रयास करे , आपसे भी यही उम्मीद रहेगी ,लेकिन अगर आप भी उस जैसी ही मानसिकता रखते हैं तो फिर शुभकामनाओं के साथ हमेशा के लिए अलविदा

    महक

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  4. झूठ बोलना तो कोई आपसे सीखे महक जी! आपसे मैंने कब कहा कि आपने मुझे नहीं न्यौता । मैंने कहा था कि आपने किसी दलित ब्लॉगर को क्यों नहीं निमंत्रित किया और आपके मांगने पर मैंने जनपक्ष ब्लॉग का उल्लेख कर दिया था जहां जाकर आप एक से अधिक दलित ब्लॉगर्स को बुला सकते थे अगर आपको बुलाना होता तो ...।

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  5. महक बाबा! अगर ज्यादा तीन पांच की तो ‘मराठियों पर हुई रिसर्च‘ को नई पोस्ट बनाकर डाल दूंगा ब्लॉग पर ।

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  6. @सत्य गौतम महाराज

    ये पोस्ट डालने की धमकी अपने जैसे गीदड़ों को देना जिनमें अपनी असली पहचान के साथ ब्लॉग्गिंग करने की हिम्मत नहीं है
    तुम्हारी हर पोस्ट पर तुम्हे मैंने आईना दिखाया है ओर अगर तुम नहीं सुधरे तो ईश्वर की कृपा से ये सिलसिला आगे भी जारी रहेगा


    जहाँ तक बात है न्योते वाली तो हमारी पहली मुलाकात में ही आपने जो कहा था उसे संशिप्त में थोड़ा सा यहाँ भी डाल देता हूँ

    महक जी ! आपने भी किसी दलित को अपनी पार्लियामेंट में स्थान न दिया, क्यों ? फिर कैसी आपकी संसद और कैसा आपका कानून ? कानून बनाया था बाबा साहब ने, अगर आप किसी अंबेडकरवादी को अपना अध्यक्ष चुनते हुए डरते हैं तो कम से कम उनमें से किसी एक को सम्मिलित तो करते। इसके लिए ज्यादा नहीं तो दो चार दलित बुद्धिजीवियों को तो चुनते। यह मेरी शिकायत है, और विरोध भी । कृप्या दर्ज करें।

    अब ज़रा मुझे बताओ की इन लाइनों का क्या मतलब निकाला जाए ?, क्या आप दलित नहीं हैं ? या फिर आपको न्योता देना कोई गुनाह है ?

    ओर जनपक्ष ब्लॉग वाली बात भी बताता चलूँ ,ज़रा अपना ब्लॉग फिर से खोलकर देखिये ,जनपक्ष नाम के ब्लॉग का उलेख तो किया लेकिन जब मैंने आपसे उसका लिंक माँगा तो हो गई आपकी सिट्टी-पिट्टी गुम , जब मैं आपसे direct उन ब्लोग्गेर्स के लिंक मांग रहा हूँ जिनकी बात आप कर रहें हैं तो आपको वो लिंक्स देने में क्या आपत्ति है ?

    इसी से आपके घृणित मकसद का पता चलता है की उद्देश्य ही इस ब्लॉग जगत में भी जातिवाद का ज़हर घोलने का है

    महक

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